मंदिर में परिक्रमा क्यों लगाई जाती है?क्यों गीले कपडे पहना जरुरी है परिक्रमा करते समय?

मंदिर में परिक्रमा क्यों लगाई जाती है?क्यों गीले कपडे पहना जरुरी है परिक्रमा करते समय?

 

आप मंदिर जाते है , उस मंदिर में देवी देवताओ से आशीष प्राप्त करते है और साथ में ही लगाते है उनके चारो तरफ परिक्रमा | क्या आप जानते है की मंदिर के चारो तरफ परिक्रमा क्यों लगाई जाती है ?

 

मंदिर नित्य पूजा स्थली होने के कारण सकारात्मक और  आध्यात्मक ऊर्जा का केंद्र होता है।जब हम मंदिर के चारो तरफ परिक्रमा लगाते है ,तो वही सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है। इसी के साथ साथ जिस देवी देवता के चारो ओर चक्कर लगाया जा रहा है उनकी हम ऊपर विशेष कृपा रहती है। परिक्रमा से अक्षय पुण्य की प्राप्ति और मानसिक और आर्थिक बढ़ोतरी होती है।

 

आप हमेशा ध्यान देते होंगे की मंदिर में शांति की प्राप्ति होती है और यह इसी सकारात्मक ऊर्जा के कारण ही है।

 

कैसे करे परिक्रमा और परिक्रमा लगाते समय क्या बाते रखे ध्यान  :

 

परिक्रमा हमेशा घड़ी की सुई की दिशा में करनी चाहिए। परिक्रमा करते समय मन चंचल ना होकर अपने आराध्य प्रभु की प्रशंसा में लगा होना चाहिए। परिक्रमा करते समय बाते नही करनी चाहिए और मंत्र जाप या जयकारा  करे।

 

हनुमानजी जी की तीन परिक्रमा और बाकि देवी देवताओ की एक परिक्रमा करनी चाहिए।

 

शिवलिंग  की परिक्रमा हमेशा बांई ओर से शुरू कर जलाधारी के आगे निकले योनी भाग जहा से जल बाहर निकलता है तक जाकर फिर विपरीत दिशा में लौट कर परिक्रमा शुरू करने की जगह पहुंचा जाता है | इसे ही आधी परिक्रमा कहते है।

 

पीपल के पेड़ की 7 परिक्रमा लगानी चाहिए।

 

सोमवती अमावस्या को मंदिरों में 108 परिक्रमा लगानी चाहिए |

 

जिन देवताओ के चारो तरफ की परिक्रमा की संख्या का हम्हे ज्ञान नही है उनके चारो तरफ आप तीन परिक्रमा लगा सकते है |

 

शनिदेव और सूर्य  की आप 7 परिक्रमा लगा सकते है ।

 

क्यों गीले कपडे पहना जरुरी है परिक्रमा करते समय :

 

परिक्रमा का अर्थ है प्रदक्षिणा जो हमेशा घडी की सुई की दिशा में की जाती है। अलग अलग देवी देवताओ की परिक्रमा के अलग अलग नियम है।वैज्ञानिक भी बताते है की हमारी धरती के उत्तरी और दक्षिणी छोर पर चुम्बकीय शक्ति है। घडी की सुई की दिशा में चक्कर लगाने से हम वो प्राकर्तिक शक्तियाँ अर्जित करते है।

 

और यदि यह परिक्रमा किसी देवी देवता की तो इन शक्तियों के साथ हम्हे आध्यात्मिक शक्तियाँ भी प्राप्त होती है। यदि हम नंगे पाँव और गिले कपड़ो के साथ यदि मंदिर में परिक्रमा करते है तो अधिक से अधिक यह उर्जा अर्जित कर पाते है।

 

इसलिए ही हमारे प्राचीनतम मंदिर के पास कुवे तालाब और नदी सरोवर जरुर होते थे | कुम्भ के मेले में भी स्नान करके अपने आराध्य देवी देवताओ के दर्शन किये जाते है।