About Maha Shivratri 2018

संवत्सर के 12वें मास फाल्गुन में जब सूर्यदेव अपनी 12 रश्मियों से इस जगत को प्रकाशित करते हैं और 12वीं राशि की ओर जाने की तैयारी करते हैं तब फाल्गुन कृष्ण पक्ष चतुर्दशी के दिन सूर्य की 12 ज्योतियों से संयुक्त 12 ज्योतिर्लिंग के प्राकट्य अवसर एवं भगवान-शिव एवं माता पार्वती के विवाह के दिन को “महाशिवरात्रि महापर्व” कहा जाता है।
श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर में महाशिवरात्रि के पहले शिव नवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। शिव नवरात्रि का पर्व बड़े ही उत्साह से मनाया जाता है, जिसके अतंर्गत प्रतिदिन बाबा महाकाल का आकर्षक श्रृंगार किया जा रहा है।
इस वर्ष श्री महाकालेश्वर मंदिर में दिनांक 05/02/2018 से 14/02/2018 तक शिव नवरात्रि उत्सव मनाया जायेगा।
इस दौरान पूरे 9 दिन तक महाकाल के दरबार में देवाधिदेव महादेव और माता पार्वती के विवाहोत्सव का उल्लास रहता है।
शैव मतानुसार; महाशिवरात्रि के 9 दिन पूर्व अर्थात; फाल्गुन कृष्ण पक्ष पंचमी 16 फरवरी से फाल्गुन कृष्ण पक्ष चतुर्दशी 13 फरवरी 2018 महाशिवरात्रि तक शिव नवरात्रि या महाकाल नवरात्रि का 9 दिन का उत्सव बताया गया है। जिस प्रकार शक्ति की आराधना हेतु देवी नवरात्रि रहती है, उसी प्रकार भगवान् शिव की साधना के लिए शिव नवरात्रि का विधान बताया गया है।
उज्जैन शक्तिपीठ और शक्तितीर्थ है। यहां महाकाल के साथ देवी हरसिद्धि विराजित हैं। शिव-पार्वती संबंध के कारण शक्ति की तरह शिव की भी नवरात्रि उत्सव की परंपरा है। यहां नौ रात्रि तक विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। महाकालेश्वर मंदिर में महाकाल नवरात्रि के दौरान लघुरुद्र, महारुद्र्र, अतिरुद्र, रुद्राभिषेक, शिवार्चन, हरिकीर्तन के आयोजन किए जाते हैं।
श्री शिव नवरात्रि देश के प्रसिद्ध बारह ज्योतिर्लिंगों के अलावा कई शिव मंदिरों में विशेष रूप से मनाई जाती है।
शिव नवरात्रि के अंतर्गत; भस्मारती के बाद प्रातः श्री महाकालेश्वर मंदिर के नैवेद्य कक्ष में भगवान श्री चंद्रमौलीश्वर का पूजन किया जायेगा, उसके पश्चात कोटितीर्थ कुण्ड के समीप स्थापित श्री कोटेश्वर महादेव का अभिषेक एवं पूजन किया जायेगा। उसके पश्चात 11 पंडितों द्वारा एकादश-एकादशनी, लघु रुद्र पाठ किया जाता है। गर्भगृह में भगवान महाकाल का पंचामृत अभिषेक पूजन कर केसर युक्त चंदन के लेपन से भगवान का दूल्हा बनाया जाएगा।
श्री महाकालेश्वर मंदिर, उज्जैन में महाशिवरात्रि पर्व भूतभावन बाबा महाकाल और माता पार्वती के विवाह उत्सव और शिव नवरात्रि के रूप में मनाया जाता है।
इस दौरान पूरे नौ दिन तक महाकाल के दरबार में देवाधिदेव महादेव और माता पार्वती के विवाहोत्सव का उल्लास रहता है। भस्म रमाने वाले बाबा महाकाल दूल्हा बनते हैं। उन्हें हल्दी लगाई जाती है और हल्दी और चंदन से ऊबटन कर उनका नित नया मनमोहक श्रृंगार किया जाता है।
मान्यतानुसार भगवान शिव को पुजन मे हल्दी नही चढ़ाई जाती है; किन्तु इन 9 दिनों मे बाबा महाकाल को नित्य हल्दी, केशर, चन्दन का उबटन, सुगंधित इत्र, ओषधी, फलो के रस आदि से स्नान करवाया जाता है।
जिस प्रकार विवाह के दौरान दूल्हे को हल्दी लगाई जाती है। उसी प्रकार भगवान महाकाल को भी हल्दी लगाई जाती है।
शिव नवरात्रि महोत्सव के प्रथम दिवस, अर्थात; 05 फरवरी 2018 को भस्म रमाने वाले भूतभावन बाबा महाकाल को दूल्हा बनाया जाता है, और इसके साथ ही उज्जैन के महाकाल मंदिर में शिव नवरात्रि महोत्सव की शुरूआत होती है।
9 दिनों तक चलने वाले इस विवाह उत्सव में शहर सहित देशभर के श्रद्धालु पहुँचते हैं।
9 दिनों तक सांय को केसर व हल्दी से भगवान महाकालेश्वर का अनूठा श्रृंगार किया जाएगा। पुजारी भगवान को हल्दी लगाकर दूल्हा बनाएंगे। भक्तों को 9 दिन तक भगवान महाकाल अलग-अलग रूपों में दर्शन देंगे।
अवंतिकानाथ के दिव्य रूप के दर्शन के लिए बड़ी संख्या में भक्त उमड़ते हैं। शिव विवाहोत्सव के लिए मंदिर को वस्त्र, पुष्प तथा विद्युत रोशनी से दुल्हन की तरह सजाया जाता है।
श्री महाकाल महाराज के दरबार में भगवान महाकाल और माता पार्वती के विवाह उत्सव का उल्लास; शिव नवरात्रि के प्रथम दिवस से बिखरने लगता है।
महाशिवरात्रि का पर्व यूँ तो हर ज्योतिर्लिंग और शिवालय में मनाया जाता है, किन्तु उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में महाशिवरात्रि पर्व खास होता है।
महाशिवरात्रि महापर्व के बाद दूज पर भगवान महाकाल महाराज का पंचमुखारविंद श्रृंगार होगा। यह श्रृंगार वर्ष में सिर्फ एक बार होता है।
शिव नवरात्रि में जो भक्त राजाधिराज के दर्शन नहीं कर पाए, वे दूज पर एक साथ विभिन्न रूपों के दर्शन कर सकते हैं।
मान्यता है कि; शिव नवरात्रि के 9 दिन दूल्हा स्वरूप में होने वाले राजाधिराज बाबा महाकाल के श्रृंगार के दर्शन करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। महाशिवरात्रि के दिन भगवान महाकाल का सेहरा सजाया जाता है।
शिव नवरात्रि के दौरान सुबह 10 बजे से दोपहर 12.30 बजे तक गर्भग्रह में एकदश-एकादशनी पाठ होता है। इसके चलते सुबह 10.30 बजे होने वाली भोग आरती अनुष्ठान के बाद होती है। इसी प्रकार शाम 5 बजे होने वाली संध्या पूजा 2 घंटे पहले दोपहर 3 बजे से होती है।
विधिवत पूजन के पश्चात शिवनवरात्रि में शाम को संध्या पूजन में भगवान श्री महाकाल को नवीन वस्त्र धारण कराए जाते हैं। पहले दिन भगवान महाकाल को सोला-दुपट्टा तथा जलाधारी पर मेखला धारण कराई जाएगी। श्रृंगार कर बाबा महाकाल को चांदी की नरमुण्ड माला, कुण्डल, चन्द्रमा के साथ फलों की माला धारण कराई जाती है।
9 दिन तक संध्या आरती के समय श्री महाकालेश्वर का नित नया श्रृंगार होगा। पहले दिन भगवान को हल्दी, चंदन तथा केसर के उबटन से स्नान करवाकर दूल्हा बनाया जाएगा। पश्चा,त चंदन का श्रृंगार कर नवीन वस्त्र, दुपट्टा तथा जलाधारी में मेखला धारण कराई जाएगी।
9 दिनों में भगवान महाकालेश्वर विभिन्न रूपों में, जैसे; शेषनाग, छबीना, घटाटोप, उमा-महेश, मनमहेश, चंद्रमौलेश्वर, शिवतांडव रूप में भक्तों को दर्शन देंगे। शिवरात्रि पर महानिशाकाल में महाकाल का विशेष पूजन होगा। इसके बाद भगवान का सप्तधान स्वरूप में श्रृंगार कर शीश पर फूलों व फलों का मुकुट सजाया जाएगा।
दिनांक 13/02/2018, दिन मंगलवार, महाशिवरात्रि महापर्व पर प्रातः 02:30 बजे पावन भस्मारती हेतु पट खुलेंगे। प्रातः 07:30 बजे दद्योदक आरती एवं 10:30 बजे भोग आरती होगी।
दोपहर 12:00 बजे शासकीय तहसील उज्जैन की और से अभिषेक-पूजन एवं अपरान्ह 04:00 बजे शासकीय पूजन के पश्चात होल्कर एवं सिंधिया परिवार द्वारा वंशपरम्परानुसार अभिषेक-पूजन किया जाएगा।
अभिषेक पश्चात सांय 06:30 बजे की आरती होगी।
रात्रि 09:00 बजे से कोटितीर्थ कुण्ड के समीप स्थापित श्री कोटेश्वर महादेव का पंचामृत पूजन, सप्तधान अर्पण के बाद पुष्प मुकुट (सेहरा) श्रृंगार आरती होगी।
रात्रि 11:00 बजे से मंदिर गर्भगृह में श्री महाकालेश्वर भगवान् जी की महापूजा एवं अभिषेक (भस्म धुलन, रुद्राक्ष माला धारण, भू शुद्धि, भुत शुद्धि, अंतर्मात्रिका, बर्हिर्मात्रिका, महान्यास, लघुन्यास, रूद्र पूजन, पञ्च वक्त्र पूजन) होगा।
श्री महाकालेश्वर भगवान् जी को शिव सहस्त्रनामावली से बिल्बपत्र अर्पित किये जावेंगे।
इसके पश्चात बाबा महाकाल को सप्तधान्य का मुखौटा धारण कराया जायेगा।
इसके पश्चात सप्तधान्य (चावल, गेंहू, जौ, मसूर खड़ा, साल, मूंग खड़ा, तिल) चढ़ाया जायेगा।
महाशिवरात्रि के दूसरे दिन, अर्थात; 14/02/2018 को  प्रातः 04:00 बजे बाबा महाकाल को लगभग 100 किलो फूलों से बना सेहरा चढ़ाया जाता है। बाबा महाकाल को सवा मन फूलों का पुष्प मुकुट बांधा जायेगा, तथा सोने के कुण्डल, छत्र व मोरपंख, सोने के त्रिपुण्ड से सुसज्जित किया जावेगा। दूल्हे के रूप में सजे भगवान् महाकाल का आकर्षक श्रृंगार रूप देख श्रृद्धालु भी मोहित हो जाते हैं।
श्री महाकालेश्वर भगवान् का सेहरा बनाने में गुलाब, मोगरा, कुंद, चमेली व आंकड़े के फूलों व अंगूर, बेर आदि फलों का उपयोग भी किया जाता है। सेहरे को आकर्षक स्वरूप देने के लिए पूना से विशेष तौर पर जरवेरा फूल मंगाए जाते हैं। सेहरा बनाने में करीब 100 किलो फूलों का इस्तेमाल किया जाता है।
14/02/2018 को प्रातः 06:00 बजे आरती होगी तथा बाबा महाकाल पर चांदी के बिल्बपत्र एवं सिक्के न्योछावर किये जायेंगे।
14/02/2018 को सुबह 6 से 11 बजे तक सभी भक्तगण बाबा महाकाल के सेहरे के दर्शन कर सकेंगे।
14/02/2018 को प्रातः 11:00 बजे से दिन की भस्मारती समाप्त होने तक मंदिर में प्रवेश निषेध रहेगा।
महाशिवरात्रि के दुसरे दिन, अर्थात; 14/02/2018 को दोपहर 12 बजे भगवान् महाकाल की दिव्य भस्मारती होती है। वर्ष में एक बार महाशिवरात्रि के दूसरे दिन, अर्थात; 14/02/2018 को भस्मारती तड़के 4 बजे की बजाए, दोपहर में 12 बजे होती है। दोपहर 12 से 2 बजे तक भस्मारती होगी।
यह भस्मारती वर्ष में एक बार महाशिवरात्रि के दुसरे दिन, अर्थात; 14/02/2018 को दोपहर 12:00 बजे होती है।
प्रातः 07:30 एवं 10:30 बजे की आरती; वर्ष में एक बार दोपहर में होने वाली भस्मारती के पश्चात अपरान्ह 02:00 बजे होगी।
इसके अगले दिन, अर्थात; महाशिवरात्रि के दुसरे दिन, अर्थात; 14/02/2018 को भक्तों को; श्री महाकालेश्वर भगवान् जी के पञ्चमुखारविंद के रूप में दर्शन देंगे।
श्री महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति, उज्जैन सभी धर्मप्राण जनता से अनुरोध करती है कि; इस सुवर्ण अवसर पर प्रतिदिन सांय बाबा महाकाल के विभिन्न स्वरूपों के श्रृंगार के दर्शन का लाभ प्राप्त कर शिव नवरात्री एवं महाशिवरात्रि पर्व पर पुण्यवान बने।
जिस प्रकार नवरात्रि में देवी भक्त माता दुर्गा की उपासना कर उपवास रखते हैं, उसी प्रकार शिव नवरात्रि में मंदिर के पुजारी तथा पुजारी परिवार उपवास रखते हैं। शिवरात्रि के बाद भगवान को अर्पित प्रसादी ग्रहण कर उपवास खोला जाता है।
कृष्ण पक्ष में चन्द्रमा की कलाएं क्षीण हो जाती हैं। मन का कारक चंद्रमा कमजोर होने से मानसिक पीड़ा रहती है। इसलिए शिव की आराधना फलदायक है। इस दौरान की गई आराधना सर्वोत्तम फलदायक होती है।
शिव का पूजन रात्रि में किया जाता है। कृष्ण पक्ष अर्थात; अंधकार का समय उसमें भी चतुर्दशी तिथि जिसे कालरात्रि की संज्ञा दी गई है। संहार शक्ति एवं तमोगुण के अधिष्ठाता भगवान शिव चतुर्दशी तिथि के स्वामी हैं। इस कालरात्रि में यदि शिवार्चन को विशिष्ट फलदायक माना गया है